मिट्टी लकड़ी और खपरैल के मकान अब यदा-कदा कहीं दीख जाते हैं।
हमारी झोपड़ियां भी अब नहीं रही, ऐसी स्थिति में सीमेंट बालू ईट लोहा स्टील सभी गर्मी में गर्म और सर्दी के दिन में ठंडे होते हैं।
इनकी वजह से हमारा पर्यावरण परिस्थितिकी तंत्र पूरी तौर पर गड़बड़ा गया है।
वैज्ञानिकों के अनुसार पक्के मकानों में कमी लाकर हमें पुन: लकड़ी मिट्टी और खपरैल के मकान बनाने होंगे।
अब समस्या यह है कि लकड़ियां बची नहीं हमें अधिक से अधिक वृक्षारोपण करते हुए इमारती लकड़ी या तैयार करना होगा, इसके लिए वह बांस के बंबू काफी सहायक होंगे।
आइए इस दिशा में भी दो कदम बढ़ाए।
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