कई बार एसे मौके आते हैं जब देश में ही कुछ देश विरोधी गतिविधियां और हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ के कारनामे सामने आते हैं। पर याद रखना चाहिए कोई भी व्यक्ति इस देश और देश की सुरक्षा से बड़ा नहीं है। ना ही कोई पद इतना बड़ा है जो देश की संप्रभुता औऱ अखंडता से खिलवाड़ कर सके। हमेशा इस बात को याद रखना चाहिए कि देशहित सर्वोपरी है। और इसीलिए समय समय पर हमारे देश में तमाम बंदिशों को तोड़कर ऐसे फैसले लिए गए जो हमेशा के लिए एक नज़ीर बन गए। जम्मू कश्मीर शुरू से बेहद संवेदनशील रहा है। जहां एक ओर पाकिस्तान नए नए षड़यंत्रों और आतंकवादी संगठनों के ज़रिए भारतीय सीमा में अपनी नापाक हरकतें करता आया है.. तो वहीं और जम्मू कश्मीर में अलगाववादी संगठन हमेशा वहां का माहौल ख़राब करने कोशिश में लगते रहते हैं.. इसी के चलते एक एसे क़ानून की जरूरत महसूस हुई जो राष्ट्र की सुरक्षा से खिलवाड़ करने वालों पर कार्रवाई कर सके। इसीलिए पहले जम्मू कश्मीर में जम्मू और कश्मीर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम लाया गया। इसके बाद 1980 में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून पूरे देश में लागू हुआ। जिसके जरिए देश की सुरक्षा से खिलवाड़ करने वाले किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी की जा सके। यह कानून देश में आतंकवाद और नक्सलवाद जैसी किसी भी चुनौतियों से निपटने में भी कारगर भूमिका अदा करता है। अभी हाल ही में केन्द्र सरकार के जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद 16 सितंबर को जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला को सार्वजनिक सुरक्षा कानून के तहत हिरासत में ले लिया गया। जिसके बाद से सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम एक बार फिर से सुर्खियों में है। आज विशेष के इस अंक में हम बात करेंगे पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला की गिरफ्तारी के पूरे मामले की.. जानेंगे जम्मू-कश्मीर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम औऱ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तमाम प्रावधानों को
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